इको टूरिज्म की व्यवस्था को संस्थागत स्वरूप प्रदान किए जाने को ले पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने इसका ढांचा तैयार करना शुरू कर दिया है। कई नए स्थलों को भी इको टूरिज्म के मानचित्र पर लाए जाने की तैयारी है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर तय हुआ है कि इको टूरिज्म को प्रोन्नत करने के लिए अलग से कोई बोर्ड, निगम या फिर एसपीवी नहीं बनेगा। विभाग के अंदर ही एक विंग बनेगा। वहां हर स्तर के अधिकारी को तैनात किया जाएगा। वहीं राजगीर के बाद अब गया को भी इको टूरिज्म के मानचित्र पर लाने की तैयारी चल रही है। भगवान बुद्ध की स्मृतियों को भी इको टूरिज्म के माध्यम से संजोया जाएगा।
गया के डुंगेश्वरी पर्वत को भी इको टूरिज्म के लिहाज से विकसित किया जा रहा। वहां पर्याप्त जगह भी है। पर्वत के पास सुजाता गांव है। सुजाता ने भगवान बुद्ध को खीर खिलाई थी। यहां बुद्ध की प्रतिमा भी है। इसके अतिरिक्त गया के ब्रह्मïयोनि, प्रेतशिला व रामशिला पर्वत को भी इको टूरिज्म की दृष्टि से विकसित किया जा रहा।
इको टूरिज्म मैप पर बिहार के 50 से अधिक छोटे–बड़े जगहों को जगह मिलेगी। वाल्मीकिनगर पहले से है। इसके अतिरिक्त जमुई में नागा नकटी पक्षी विहार, बेगूसराय का कांवर झील, रोहतास व कैमूर के कई मनोरम स्थल, मुंगेर, भागलपुर का गरुड़ संरक्षण केंद्र, गया का नगर वाटिका, अररिया व कटिहार आदि इको टूरिज्म के लिहाज से बड़े स्पाट हैं।