जैन धर्म

जैन धर्म भारत की श्रमण परंपरा से प्राप्त एक धर्म और दर्शन है। जैन शब्द संस्कृत शब्द से बना है जिसका अर्थ है विजेता। जिन लोगों ने अपनी वाणी और काया जीत ली है, वे जिन हैं। जैन धर्म ईश्वर का धर्म है। वस्त्रहीन शरीर, शुद्ध शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी इनके अनुयायी की पहली पहचान है। जैन महात्माओं को निर्ग्रन्थ और जैन संस्थापकों को तीर्थंकर कहा गया है। जैन धर्म की उत्पत्ति और विकास के लिए 24 तीर्थंकर जिम्मेदार थे।

जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) थे जिनका जन्म अयोध्या में हुआ था। उन्होंने कैलाश पर्वत पर अपने शरीर का त्याग किया। आर्यों के आगमन के बाद भी ऋषभदेव और अरिष्टनेमि की परंपरा वेदों तक पहुंचती है। ऋग्वेद में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि नामक दो तीर्थंकरों की चर्चा है। भागवत पुराण में, ऋषभदेव को विष्णु अवतार और अरिष्टनेमि को वासुदेव, कृष्ण के भाई के रूप में वर्णित किया गया है। महाभारत युद्ध के समय, इस संप्रदाय के प्रमुख नेमिनाथ थे, जो जैन धर्म में एक मान्यता प्राप्त तीर्थंकर हैं। 11 वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म काशी के पास हुआ था। जिनके नाम पर सारनाथ कायम है।

23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। पार्श्वनाथ काशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे। पार्श्वनाथ के पहले अनुयायी उनकी माँ वामा और पत्नी प्रप्रभावती थी . उन्होंने सम्मेद शिखर पर अपने शरीर का त्याग किया। उन्होंने अपने अनुयायियों से चतुर्मुख शिक्षाओं और चार प्रथाओं का पालन करने के लिए कहा। उनके अनुयायियों को निर्ग्रंथ कहा जाता था। महावीर 24 वें और अंतिम तीर्थंकर थे।

महावीर स्वामी 
जन्म : 540 ई. पु. कुण्डग्राम (वैशाली )
पिता : सिध्दार्थ (ज्ञातृक कुल के प्रधान )
माता : त्रिशला (लिच्छवि गणराज्य के प्रधान चेटक की बहन)
पत्नी : यशोदा (कुन्डिन्य गोत्र की कन्या )
पुत्री : प्रियदर्शन ( अनोज्जा )
दामाद : जमाली
मृत्यु : 468 ई. पु. पावापुरी (नालंदा ) में राजा हस्तिपाल के यहाँ !  

माना जाता है कि महावीर जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक हैं। जिसका मूल नाम वर्धमान था। दुनिया की स्थिति से दुखी होकर, 30 साल की उम्र में, अपने पूर्वज नंदीवर्धन से आदेश लेने के बाद, उन्होंने गृहत्याग कर दिया। महावीर की मुलाकात नालंदा के मक्खालिपुत्र गोशाल से हुई, जिसने छह साल तक महावीर के साथ कठोर तपस्या की। बाद में गोशाल ने एक आजीवन संप्रदाय की स्थापना की। 42 वर्ष (12 वर्ष बाद) की आयु में, उन्हें जिम्बिक गांव में रिजुपालिका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे कैवल्य प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्हें केवलिन कहा जाने लगा। सभी इन्द्रियों पर विजय प्राप्ति करने के कारण उन्हें जिन अर्थात विजर्त कागा गया। तपस्या के रूप में अदभुत पराक्रम दिखाने के कारण वें महावीर एवं निर्ग्रन्थ कहलाएं।

कल्पसूत्र नामक जैन धर्म ग्रन्थ से उनके सन्यासी जीवन पर प्रकाश परता है एवं आचारांग सूत्र में महावीर को निगण्ठनाथ पुत्र कहा गया है। ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर ने अपना प्रथम उपदेश राजगृह के निकट वितुलांचल पहाड़ी पर मेघकुमार को दिया। कुण्डग्राम में महावीर ने देवनन्दा ब्राह्राणी ऋषभ को दीक्षा दी। जमाली इनका प्रथम शिष्य बना। चंपा नरेश दधिवाहन की पुत्री चंदना इनकी प्रथम भिक्षानी हुई। समकालीन महत्वपूर्ण शासकों चेटक, दधिवाहन, बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयन, चंडप्रघोत की आस्था जैन धर्म में थी।

तीर्थकर प्रतिक तीर्थकर प्रतिक       
ऋषभदेव वृषभ विमलनाथ वाराह
अजितनाथ गज अनन्तनाथ श्येन
सम्भावनाथ अश्व धर्मनाथ वज्र
अभिनन्दननाथ कपि शांतिनाथ मृग
सुमतिनाथ क्रैंच कुंथुनाथ अज
पदमप्रभु पदम अरनाथ मीन
सुपार्श्वनाथ स्वस्तिक मल्लिनाथ कलश
चंद्रप्रभु चंद्र मुनिसुव्रत कूर्म
सुविधिनाथ मकर नेमिनाथ नीलोत्पल
शीतलनाथ श्रीवत्स अरिष्टनेमि शंख
श्रेयांसनाथ गैण्डा पार्श्वनाथ सर्पफण
पूज्यनाथ महिष महावीर सिंह

जैन धर्म के पतन के कारण

धीरे-धीरे जैन धर्म में गिरावट आई। इसके पतन के लिए किसी एक कारण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। पतन को निम्नलिखित कारणों के संदर्भ में समझा जा सकता है।

  • स्वच्छ धर्म का आचरण करना।
  • अहिंसा पर अत्यधिक जोर।
  • शालीनता, कठोर व्रत और तपस्या पर जोर।
  • उचित राज्याश्रय की कमी।
  • जाति व्यवस्था का दर्शन को बनाये रखना।
  • ब्राह्मण धर्म से पूरी तरह से अलग नहीं हो पाना।
  • बौद्ध धर्म का प्रसार।
  • ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान।

परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य

  • महावीर ने प्राकृत भाषा में उपदेश दिया।
  • माना जाता है कि महावीर जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक हैं।
  • पहला जैन संगीती पाटलिपुत्र में आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता स्थूलभद्र ने की।
  • दूसरा जैन संगीत 512 ईस्वी में वल्लभी में आयोजित किया गया था, जिसके प्रमुख देवार्धी क्षमाश्रमण थे।
  • जैन साहित्य प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषाओं में लिखा गया है।
  • जैन साहित्य को मुख्य रूप से आगम कहा जाता है।
  • जैन साहित्य को 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकिरण, 6 छंद सूत्र, 4 मूल सूत्र, दो मिश्रित ग्रंथ में विभाजित किया गया है।
  • जैन धर्म दो भागों में विभाजित है, दिगंबर और श्वेतांबर। दिगंबर संप्रदाय मुख्य रूप से कर्नाटक, उत्तर भारत और मध्य भारत में प्रचलित था। श्वेतांबर गुजरात, राजस्थान, मध्य भारत, पंजाब और हरियाणा में प्रचलित थे।
  • महावीर के दामाद जमाली ने बहुरत वाद नामक एक सम्प्रदाय चलाया।
  • जैन धर्म का त्रिरत्न सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र एवं सम्यक दर्शन है।

जैन धर्म के तीर्थकार एवं उनके प्रतीक

तीर्थकर प्रतीक
1.ऋषभदेव वृषभ
2.अजितनाथ गज
3.संभवनाथ अश्व
4.अभिनन्दननाथ कपि
5.सुमितनाथ क्रोंच
6.पदमप्रभु पदम्
7.सुपार्श्वनाथ स्वास्तिक
8.चन्द्रप्रभु चंद्र
9.सुविधिनाथ मकर
10.शीतलनाथ श्रीवत्स
11.श्रेयांसनाथ गैंडा
12.पूज्यनाथ महिष
13.    विमलनाथ वाराह
14. अनंतनाथ श्येन
15.धर्मनाथ व्रज
16. शांतिनाथ मृग
17.कुंथुनाथ अज
18.अमरनाथ मीन
19.मलीनाथ कलश
20.मुनिसुव्रत कूर्म
21.नेमिनाथ नीलोत्पल
22.अरिस्टनेमि शंख
23.पार्शवनाथ सर्पफन
24.महावीर सिंह

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