बिहार के सात जिलों ने मक्का के मामले में अमेरिका के उन क्षेत्रों को पीछे छोड़ दिया है, जहां की उत्पादकता विश्व में सबसे अधिक है। राज्य के इन जिलों में आज मक्का की उत्पादकता 50 क्विंटल प्रति एकड़ हो गई है। यह विश्व की सबसे अधिक उत्पादकता 48 क्विंटल प्रति एकड़ वाले से अमेरिकी क्षेत्र- इलिनोइस, आयोवा और इंडियाना से अधिक है। हालांकि कुल उत्पादन के मामले में देश में ही बिहार दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर तमिलनाडु है। इसका प्रमुख कारण है कि राज्य में केवल रबी मौसम में ही मक्का की फसल अधिक होती है। खरीफ में किसान धान उत्पादन पर ही जोर देते हैं।
राष्ट्रीय फलक पर आए जिले
बिहार सरकार ने उत्पादकता का जिलावार आंकड़ा लिया तो चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया और समस्तीपुर जिलों में औसत उत्पादकता 5र्0 ंक्वटल प्रति एकड़ है। ये सभी जिले मक्का उत्पादक के रूप में राष्ट्रीय फलक पर आ गये हैं। हालांकि, वर्ष 2016 में ही मक्के की सर्वश्रेष्ठ उत्पादकता के लिए केंद्र सरकार ने बिहार को कृषि कर्मण पुरस्कार से नवाजा था।
नए बीज का भी रहा प्रभाव
कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो राज्य में मक्का के क्षेत्र यह क्रांति कृषि रोड मैप के कारण आई है। पहले कृषि रोडमैप से ही सरकार का जोर बीज पर है। पहले किसान खेत में पैदा हुए अनाज को ही बतौर बीज इस्तेमाल करते थे। लिहाजा 2005-06 तक मक्का की उत्पादकता 27 क्विंटल प्रति एकड़ से आगे नहीं बढ़ी। कृषि रोडमैप के बाद सरकार के प्रयास से किसान नये बीज का इस्तेमाल करने लगे तो मक्का में बीज प्रतिस्थापन दर (बीज बदलने की दर) लगभग 90 प्रतिशत तक पहुंच गई और उत्पादकता में भी रिकॉर्ड बन गया। हालांकि, वर्ष 2017 में राज्य की औसत उत्पादकता 40.25 क्विंटल प्रति एकड़ पहुंच गई थी।
दस वर्ष में तीन गुना बढ़ा उत्पादन
बिहार में वर्ष 2005-06 में मक्के का कुल आच्छादन क्षेत्र 6.48 लाख हेक्टेयर तथा उत्पादन 10.36 लाख टन हुआ। वर्ष 2016-17 में मक्के का रिकॉर्ड उत्पादन दर्ज किया गया। उस वर्ष 7.21 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का का आच्छादन हुआ था तथा कुल उत्पादन 30.85 लाख टन हुआ। यानी दस वर्ष में उत्पादन बढ़कर तीन गुना हो गया। कमोबेश वही स्थिति आज भी बरकरार है। हाल के वर्षों में मौसम के दगा देने से कुछ उत्पादन गिरा है। लेकिन, उत्पादकता में कमी नहीं आई।