“वर्तमान शिक्षा पद्धति” पर 700 से 800 शब्दों में निबंध लिखें

शिक्षा का वास्तविक अर्थ ‘सीख’ है, जिससे मानव का विवके जागृत होता है. सभी शिक्षा का उद्देश्य सच्चाई प्रकट करना तथा व्यावहारिक जीवन में हर प्रकार की सहायता प्रदान करना है.

महात्मा गांधी के मतानुसार सच्ची शिक्षा पुस्तकें पढ़ने में नहीं अपितु चरित्र संगठन में है. मानव को उसके उच्चतम पुरूषार्थ को सिद्ध कर लेने के योग्य बनाना ही शिक्षा हा उद्देश्य होना चाहिए. उस ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जो उसके मन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना जागृत करने वाली हो.

प्राचीन शिक्षा प्रणाली : 

प्राचीन भारत में यह शिक्षा नगर के कोलाहल और कलह से दूर सघन वनों में स्थित महर्षियों के गुरूकुलों और आश्रमों में दी जाती थी. छात्र पूरे पच्चीस वर्ष की आयु तक गुरू के चरणों की सेवा करता हुआ विधिवत् विद्याध्ययन करता था. यहां उसका सर्वागीण विकास होता था.

तक्षशिला और नालन्दा विश्वविद्यालय उस समय देश के प्रमुख शिक्षा केन्द्र थे. फिर विदेशी आक्रमणों से देश की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था भी प्रभावित हुई और पूर्ण भारतीय शिक्षा प्रणाली का स्थान मध्य युगीन उर्दू-फारसी मिश्रित शिक्षा व्यवस्था ने ले लिया.

आधुनिक शिक्षा प्रणाली-उद्भव, विकास, गुण व दोष:
कालान्तर में भारत में पश्चिम का राजनैतिक प्रभाव द्रुत गति से फैल गया. सम्पूर्ण भारत अंग्रेजी शासकों के मातहत हो गया. अंग्रेजी ने अपने शासन को चिरस्थायी बनाने के लिए अपनी रीति से शिक्षा देने की व्यवस्था की.

सन् 1828 मे मैकाले द्वारा चालू की गई शिक्षा प्रणाली जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक क्लर्क बनाना था। यह नीति सम्पूर्ण ब्रिटिष शासन काल में लागू रही जिसके अवशेष आज तक भारतीय शिक्षा प्रणाली में न्यूनाधिक जीवित हैं जिससे आज भी हमारी शिक्षा दोषपूर्ण तथा अव्यावहारिक प्रमाणित हो रही है.

मैकाले द्वारा प्रतिपादित शिक्षा प्रणाली ने जहां अंग्रेजों की स्वार्थ-सिद्धि में सहायता की, वहीं भारतीयों का आत्मनिर्भरता की भावना तथा चरित्र निर्माण से दूर कर केवल उदरपूर्ति के लिए संघर्षरत बना दिया.

स्वतंत्र भारत में शिक्षा पद्धति :
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से भारत सरकार ने निरन्तर शिक्षा पद्धति में सुधार के प्रयत्न किये तथा इस दूषित शिक्षा प्रणाली पर अनेक चर्चायें और विचार-विमर्श हुए. कई प्रकार के आयोग बैठाये गये और उनकी संस्तुति के अनुरूप समय-समय पर अनेक परिर्वतन हुए, लेकिन मूल ढांचे में विशेष परिवर्तन नहीं हो पाया और शिक्षा का सही उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया. आज भी हमारी शिक्षा उन्हें विविध विषयों का सैद्धान्तिक ज्ञान तो देती है, पर उन्हें किसी प्रकार स्वावलम्बी नहीं बना पाती है.

वर्तमान शिक्षा प्रणाली :
आजादी के बाद शिक्षाविदों ने नई शिक्षा प्रणाली का सुझाव दिया. इस व्यस्था से विद्यार्थी का स्नातक बनने में कुल 15 वर्ष का समय लगता था, किन्तु स्नातक बनने से पहले उसके सामने दो बार अर्थात् 10 वर्ष की शिक्षा समाप्त कर या 10 प्लस 2 अर्थात् 12 वर्ष की शिक्षा समाप्त कर जीविका उर्पाजन करने की योग्यता व क्षमता प्राप्त होती थी. 12 वर्ष के बाद स्नातक के लिए तीन वर्षो की शिक्षा को इस प्रकार सीमित किया गया था.

दस वर्ष की शिक्षा अर्थात् माध्यमिक शिक्षा के बाद दो वर्ष की अतिरिक्त पढ़ाई में जिसे उच्च माध्यमिक शिक्षा कहा गया, व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया जाता था. इस व्यावसायिक शिक्षा को प्राप्त कर छात्र अपना रोजगार करने में समर्थ होते थे.

इस उच्च माध्यमिक परीक्षा के बाद विष्वविद्यालय की तीन वर्ष की शिक्षा के लिए केवल चुने हुए योग्य छात्र ही लिए जाते थे. सामान्य औसत छात्र की शिक्षा 10 प्लस 2 के बाद ही समाप्त हो जाएगी. इंजीनियरिंग, डाॅक्टरी या अन्य इस प्रकार की विषेष शिक्षा की संस्थाओं में 10 प्ल्स 2 के बाद प्रवेश मिल सकेगा.

यह पद्धति लंबे समय तक चलती रही और इसमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया है लेकिन साल 2020 में भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति जारी की, जिसमें वर्तमान शिक्षा प्रणाली के आधारभूत संरचना में कई परिवर्तन किए गए हैं।

भारत की नई शिक्षा नीति :

राष्ट्रीय शिक्षा नीति – National education Policy 2020

भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में कुछ सुधार कर इसे लागू किया गया है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए गए सस्टेनेबेल डवनपमेंट गोल को केन्द्र में रखा गया है। इस गोल को पूरा करने के लिए नीति में वर्ष 2030 का लक्ष्य तय किया गया है।

शिक्षा के पैटर्न में बड़ा बदलाव: इस नीति में वर्तमान में लागू 10 + 2 स्कूली शिक्षा के स्थान पर 5 + 3 + 3 + 4 की एक नयी व्यवस्था लागू करने की बात की गई है। इसमें पहले 5 वर्ष में 3 वर्ष आंगनवाड़ी और शेष 2 साल में कक्षा 1 व 2, अगले तीन वर्ष में कक्षा 5 तक और उससे अगले 3 वर्ष में कक्षा 8 तथा शेष 4 वर्षों में कक्षा 12 तक की शिक्षा उपलब्ध करवाई जायेगी।

Early Childhood Care and Education (ECCE) पर जोर: शुरूआती शिक्षा के लिये ECCE पर जोर दिया गया है। इसके लिये पाठ्यक्रम तैयार करने का काम एक NATIONAL EARLY CHILDHOOD CARE AND EDUCATION (ECCE) CURRICULUM FRAMEWORK बनाया जाएगा। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इसे लागू करने के लिए आश्रमशालाओं की शुरूआत की जाएगी।

शिक्षक—विद्यार्थी अनुपात Pupil Teacher Ratio (PTR): नई शिक्षा प्रणाली में यह सुनिश्चित किया जायेगा की प्रत्येक स्कूल में शिक्षक—विद्यार्थियों का अनुपात 30:1 से कम हो और सामाजिक—आर्थिक रूप से वंचित बच्चों की अधिकता वाले क्षेत्रों में स्कूलों की पीटीआर 25:1 से कम हो।

द डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (दीक्षा): भारत सरकार के दीक्षा पोर्टल पर बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर आधारित गुणवत्ता वाले संसाधनों का एक राष्ट्रीय भंडार उपलब्ध करवाया जायेगा। gross enrollment ratio (GER) बढ़ाने का लक्ष्य: व्यवसायिक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा में 2018 में दर्ज सकल नामांकन अनुपात (GER) को 26.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है। उच्चतर शिक्षा संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी।

समकक्ष बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (एमईआरयू): देश भर में आईआईटी, आईआईएम की तर्ज पर ही समकक्ष बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (एमईआरयू) भी विकसित किये जाएंगे। साथ ही विभिन्न भाषाओं के विकास के लिये एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन (आईआईटीआई) स्थापित होंगे।

नीति के विभिन्न लक्ष्य: 2030 तक 100% युवा और प्रौढ़ साक्षरता की प्राप्ति करना, 2040 तक सभी शिक्षार्थियों के लिये गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा एवं शिक्षा प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता 2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान को प्राप्त करना होगा।

वर्तमान शिक्षा पद्धति के लाभ :
वर्तमान शिक्षा पद्धति से अनेक प्रकार के लाभ हैं. इससे न केवल समूचे देश में शिक्षा का स्तर समान हो सकेगा अपितु बारह वर्ष की शिक्षा के बाद विद्यार्थी किसी न किसी व्यवसाय को अपना सकेगा और विष्वविद्यालयी शिक्षा में भीड़ कम हो सकेगी.

किन्तु यह सफलता तभी मिल सकेगी जब इसके साथ अन्य सुधार जैसे परीक्षा प्रणाली में सुधार, योग्य प्रशिक्षित शिक्षक, पर्याप्त मात्रा में धन राशि जिससे उपकरण, सहायक सामग्री आदि उपलब्ध हो सकें और सबसे अधिक आवश्यक है दृढ़ संकल्प तथा राष्ट्र अग्रणी बनाने की भावना.

 

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