हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया है कि विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा से जुड़े अन्य संस्थान आतंरिक या अन्य मानदंडों के आधार पर आधार पर अंतिम वर्ष के छात्रों को डिग्री नहीं दे सकते और इसके लिए अंतिम वर्ष की परीक्षा अनिवार्य होगा।
मुख्य बिंदु:
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ (आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005) के तहत राज्यों को यह अधिकार है कि वे COVID-19 महामारी के बीच मानव जीवन की रक्षा हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी परीक्षा दिशा-निर्देश की अवहेलना कर सकते हैं।
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्यों को बिना परीक्षा आयोजित किए आतंरिक मूल्यांकन के आधार पर ही छात्रों को प्रोन्नति प्रदान करने का अधिकार नहीं है।
गौरतलब है कि हाल ही में महाराष्ट्र और दिल्ली सरकारों द्वारा परीक्षाओं को रद्द करने और छात्रों को अन्य मापदंडों के आधार पर प्रोन्नति प्रदान करने का निर्णय लिया गया था।
न्यायालय ने निर्देश दिया है कि यदि भविष्य में राज्यों को लगता है कि 30 सितंबर तक परीक्षाओं को आयोजित करना संभव नहीं होगा और वे परीक्षाओं को विलंबित करना चाहते हैं, तो वे इस संदर्भ में यूजीसी से संपर्क कर सकते हैं।
- उच्चतम न्यायालय के अनुसार, कुछ राज्यों में COVID-19 के कारण खराब स्थिति होने के बावजूद भी परीक्षाओं की एक सामान तिथि के निर्धारण का निर्णय UGC के अधिकार क्षेत्र का हिस्सा है और यह उच्च शिक्षा के संस्थानों में मानकों का निर्धारण तथा उनके समन्वय के लिये आवश्यक है।
- उच्चतम न्यायालय ने UGC द्वारा पूरे देश शैक्षणिक कैलेंडर में एकरूपता बनाए रखने हेतु अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन हेतु समान तिथि के निर्धारण को सही बताया।
- उच्चतम न्यायलय के अनुसार, UGC ने 6 जुलाई के दिशा निर्देशों में अंतिम वर्ष के छात्रों को परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता निर्धारित कर उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया है क्योंकि अंतिम वर्ष की परीक्षाएँ छात्रों को अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने का अवसर प्रदान करती हैं और यह शिक्षा अथवा रोज़गार के क्षेत्र में उसके भविष्य का निर्धारण करती हैं।