
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने उच्च दबाव वाले समुद्री जल विलवणीकरण के लिए एक स्वदेशी नैनोपोरस बहुस्तरीय पॉलीमेरिक झिल्ली विकसित की है। इस अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग भारतीय तटरक्षक बल (ICG) के जहाजों पर किया जाएगा, जिससे समुद्री अभियानों के दौरान पेयजल की आवश्यकता को पूरा किया जा सकेगा।
यह तकनीक DRDO की कानपुर स्थित प्रयोगशाला DMSRDE (Defence Materials and Stores Research and Development Establishment) द्वारा विकसित की गई है। प्रारंभिक तकनीकी परीक्षण अपतटीय गश्ती पोत (Offshore Patrol Vessel) पर सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है और इसके परिणाम संतोषजनक पाए गए हैं।
अब इस झिल्ली को अंतिम मंजूरी से पहले 500 घंटे के परिचालन परीक्षण से गुजरना होगा, जिससे इसकी दीर्घकालिक कार्यक्षमता और विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके। उल्लेखनीय है कि यह नवाचार केवल आठ महीनों में पूरा किया गया, जो DRDO की दक्षता और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम को दर्शाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आवश्यक संशोधनों के साथ यह तकनीक तटीय क्षेत्रों और नागरिक उपयोग के लिए भी बेहद लाभकारी सिद्ध हो सकती है।
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