
हुल दिवस (Hul Diwas) भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के एक साहसिक अध्याय की याद दिलाता है, जब 30 जून 1855 को सिद्धू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में संथाल जनजाति ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और साहूकारों के अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह किया। इस आंदोलन को “संथाल हुल” के नाम से जाना जाता है और यह आदिवासी अधिकारों, जमीनी नेतृत्व, और सांस्कृतिक स्वायत्तता की रक्षा के लिए हुआ एक ऐतिहासिक संघर्ष था।
सिद्धू-कान्हू के साथ उनकी बहनों फूलो और झानो ने भी इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई, जिससे यह आंदोलन नारी शक्ति का भी प्रतीक बन गया। हुल विद्रोह को दबा दिया गया, लेकिन इसके प्रभाव के रूप में 1876 का संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम और 1908 का छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम अस्तित्व में आए, जिनका उद्देश्य आदिवासी भूमि के संरक्षण और उनकी पहचान की रक्षा करना था।
हुल दिवस (Hul Diwas) न केवल इतिहास का एक वीरगाथा पर्व है, बल्कि यह शिक्षा, समाजशास्त्र, और राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए यह समझने का एक अवसर है कि कैसे स्थानीय संघर्ष राष्ट्रीय चेतना को जन्म देते हैं।
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