अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के उप-वर्गीकरण (कोटा के भीतर कोटा)

सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के उप-वर्गीकरण (कोटा के भीतर कोटा) पर सभी अनुसूचित जातियों का समान प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित करने के लिये कुछ को अधिमान्य उपचार देने के पक्ष का समर्थन किया है।

  • वर्ष 2005 ‘ई. वी. चिनैय्या बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य मामले में पाँच न्यायाधीशों की एक पीठ ने निर्णय दिया था कि राज्य सरकारों के पास आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियाँ बनाने की कोई शक्ति नहीं है।
  • चूंकि समान शक्ति (इस मामले में पाँच न्यायाधीश) की एक पीठ पिछले निर्णय को रद्द नहीं कर सकती, अत: मामले में निर्णय लेने के लिये इसे एक बड़ी संवैधानिक पीठ को भेजा गया है। 
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा स्थापित की गई बड़ी खंडपीठ दोनों निर्णयों (अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियाँ बनाने तथा इस संबंध में राज्यों को अधिकार) पर पुनर्विचार करेगी।
  • अनेक राज्यों का मानना है कि अनुसूचित जातियों में भी कुछ अनुसूचित जातियों का सकल  प्रतिनिधित्त्व अन्य की तुलना में कम है।अनुसूचित जातियों के भीतर की असमानता को कई रिपोर्टों में रेखांकित किया गया है। 
  • इस असमानता को संबोधित करने के लिये आरक्षण के उप-वर्गीकरण अर्थात कोटा के अंदर कोटा प्रदान करने की बात की जाती है।

    बिहार:- वर्ष 2007 में बिहार सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के भीतर पिछड़ी जातियों की पहचान करने के लिये ‘महादलित आयोग’ का गठन किया गया था

क्रीमी लेयर की अवधारणा:-वर्ष 2018 में ‘जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले’ में अनुसूचित जनजातियों के भीतर एक ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा के निर्णय को कायम रखा गया।
12 साल पुराने एम. नागराज मामले में सर्वोच्च न्यायालय का मानना ​​था कि अनुसूचित जाति और जनजाति (SC / ST) को मिलने वाला लाभ समाज के सभी वर्गों को मिल सके इसके लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा का प्रयोग करना आवश्यक है. 2018 में पहली बार अनुसूचित जातियों की पदोन्नति में क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को लागू किया गया था।केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 के जरनैल सिंह मामले में निर्णय की समीक्षा की मांग की है और मामला वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।

  • संविधान के अनुच्छेद- 341 के तहत अनुसूचित जातियों को निर्धारित करने के लिये राष्ट्रपति को सशक्त किया गया है।
  • निश्चित कारणों तथा आधारों पर किया गया उप-वर्गीकरण समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। 
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों का प्रतिशत भारत की जनसंख्या का 16.6% है। 
  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018-19 में देश में कुल 1,263 अनुसूचित जनजातियाँ थी। 

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