ऋंग्वैदिक काल

ऋंगवेदिक काल

इस काल की समस्त जानकारी का एकमात्र स्रोत ऋग्वेद है। इसमें वर्णित सात नदियों (सिंधु, सरस्वती, सतलज, व्यास, रावी, झेलम, चिनाब) के आधार पर, आर्यों के निवास क्षेत्र को सप्त सैन्धव प्रदेश कहा जाता था। अफगानिस्तान (कुंभ, क्रुमु, गोमती, और सुवास्तु) नदियों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जो दर्शाता है कि अफगानिस्तान आर्य संस्कृति का हिस्सा है। ऋग्वैदिक आर्य अफगानिस्तान, पंजाब, सिंधु, कश्मीर, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एक हिस्से में फैले हुए थे। जब आर्य सतलज और यमुना नदी के बीच के क्षेत्रों में बस गए, तो उन्होंने इस क्षेत्र का नाम “ब्रह्मवर्त” रखा। धीरे-धीरे, आर्य सभ्यता फैल गई और आर्य लोग गंगा-यमुना दोआब में बस गए। उन्होंने “ब्रह्मर्षि देश” नाम से इस क्षेत्र का विकास किया। जब आर्यों का विस्तार हिमालय से लेकर विध्यांचल तक हुआ, तो उन्होंने इस क्षेत्र को “मध्य प्रदेश” कहा। अंत में, जब आर्य पूरे उत्तर भारत में फैल गए, तो इस क्षेत्र को “आर्यावर्त” कहा जाने लगा।

राजनीतिक स्थिति

ऋग्वैदिक राजनीतिक प्रणाली सरल थी और “कबीलाई संरचना” पर आधारित थी। इस अवधि के दौरान राज्य निर्माण के महत्वपूर्ण घटक अनुपस्थित थे। यह एक आदिवासी सैन्य लोकतंत्र था, जो अधिशेष उत्पादन प्राप्त करने का प्राथमिक रूप था। और इसकी शक्ति का स्रोत कबीलाई परिषद् था। प्रशासन व्यवस्था कबीले क प्रमुख के हाथों में थी, क्योंकि वह युद्ध के सफल नेता थे, जिन्हें राजन (राजा) कहा जाता था। ऋग्वैदिक काल में, राजा को ज्ञान गोप, पुरभत्ते, विश्वपति, गणपति, गोपति कहा जाता था।

दशराज्ञ युध्द        
इस युद्ध का उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल में मिलता है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि भरत वंश के राजा सुदास और परुष्णी नदी के तट पर अन्य दस राजाओं (पांच आर्य और पांच गैर आर्य) के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें सुदास के मुख्य पुजारी वशिष्ठ थे। जबकि दस राजाओं के संघ के पुरोहित विश्वामित्र थे। पाँच आर्य वंश थे – पुरु, यदु, तुर्वस, द्रुह और अणु और पाँच गैर-आर्य वंश – अकिन्न, पक्थ, भलानश, विषाणी एवं शिवि। कुछ समय बाद पराजित राजा पुरु और भरत के बीच मैत्री संबंध स्थापित होने के कारण एक नवीन कुरु वंश की स्थापना हुई।

सामाजिक स्थिति

ऋग्वैदिक सामाजिक संगठन का आधार “गोत्र” या “जन्ममूलक” संबंध था। व्यक्ति की पहचान उसके कबीले या गोत्र से की जाती थी, अधिकांश लोगों को अपने कबीले में विश्वास था, जिसे जन कहा जाता था। समाज कुछ हद तक समतावादी था। प्रारंभ में आर्य अविभाजित थे, जो विश नामक कबीले से जुड़े थे, लेकिन ऋग्वेदिक काल में ही समाज तीन भागों में विभाजित हो गया था – पुरोहित, राजन्य तथा सामान्य लोग . प्रारंभ में, शब्द ‘वर्ण’ रंग का घोतक हुआ करता था और आर्यों ने मूल निवासियों से खुद को अलग करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया। ‘वर्ण’ शब्द भी ऋग्वैदिक काल के उत्तरार्ध्द काल में कर्म की अभिव्यक्ति बन गया।

महिलाओं की स्थिति

इस दौरान महिलाओं की स्थिति अच्छी थी। वैदिक ऋचाओं को लिखने का श्रेय अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, विश्ववारा, सिक्त को दिया जाता है। इन विदुषी कन्याओं को ‘ऋषि’ की उपाधि से विभूषित किया गया था। आजीवन धर्म और दर्शन की अध्येता महिलाओं को “ब्रह्मवादिनी” कहा जाता था। ऋग्वेद में पत्नी ही गृह है’ (ज्येष्ठम) कहकर इसके महत्व को स्वीकार किया गया था।

भोजन एवं वस्त्र

ऋग्वैदिक आर्य लोग मांसाहारी और शाकाहारी दोनों थे। मुख्य खाद्य पदार्थ चावल और जौ थे। फल, दूध, दही, घी और मांस अन्य खाद्य पदार्थ थे। भोजन में, दूध की खीर (क्षीर पकोदनम) और जौ के सत्तू के साथ दही मिलाकर ‘करभा’ तैयार किया जाता था।

अश्वमेध यज्ञ के अवसर पर घोड़े का मांस खाया जाता था। गाय को अगहन्या (न मरने वाला) कहा जाता था। ऋग्वेद में नमक और मछली का कोई उल्लेख नहीं है। वे सोम और सूरा नामक एक मादक पदार्थ का सेवन करते थे, जिसकी ऋग्वेद के नौवें मंडल में चर्चा है।

ऋग्वेद के प्रमुख शब्द 

शब्द       संख्या  शब्द       संख्या 
इंद्रा 250 सभा 9
अग्नि 200 विदथ 122
जन   275 गंगा  1
विश   171 यमुना  3
पिता   335 राजा  1
माता   234 सोम  144
वर्ण   23 कृषि  24
ग्राम 13 गण 46
ब्राह्राण 15  विष्णु  100
क्षत्रिय 9   रूद्र  3
वैश्य       1 पृथ्वी  1
शूद्र   1 राष्ट्र 10

                         
कृषि एवं पशुपालन                                      
ऋग्वेद में, कृषि का उल्लेख केवल 24 बार किया गया है, जिसमें कई स्थानों पर यव एवं धान्य शब्द का उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद के चौथे मंडल में साधना प्रक्रिया का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में एक ही अनाज यव (जौ) का उल्लेख है। ऋग्वैदिक आर्यों को पाँच ऋतुओं का ज्ञान था। कृषि के महत्व के तीन शब्द – उर्दर, धान्य और संपत्ति प्राप्त होते हैं। रयि मुख्य रूप से मवेशियों में गिना जाता था। गाय के अलावा घोड़ा, हाथी, ऊंट, बैल, भेड़, बकरी, कुत्ता आदि मुख्य जानवर थे।

धार्मिक स्थिति

आर्यों का धार्मिक जीवन बहुत पवित्र और सरल था। इस अवधि के लोग, “बहुदेववाद” होने के बावजूद, एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे। ऋग्वैदिक आर्यों का धर्म मुख्य रूप से प्रकृति पूजा और यज्ञ पर केंद्रित था। ऋषवेद नासदीय सूक्त में, निर्गुण “ब्रम्हा” और “ब्रह्मांड” की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है।

ऋग्वैदिक देवता

मरुत आंधी-तूफान के देवता
सरस्वती नदी देवी (बाद में विधा की देवी )
पूषन पशुओं का देवता
अरण्यानी जंगल की देवी
यम मृत्यु की देवता
मित्र शपथ एवं प्रतिज्ञा के देवता
अश्विन चिकित्सा के देवता
सूर्य जीवन देने वाला
त्वष्टा धातुओं का देवता
आर्ष विवाह और संधि के देवता
विवस्वान देवताओं का जनक
सोम वनस्पति के देवता

        परीक्षा उपयोगी महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • ऋंगवेदिक काल 1500-1000 ई. पु. तक रहा ।
  • ऋंगवेदिक राजनैतिक व्यवस्था सरल तथा कबीलाई संरचना पर आधारित थी ।
  • ऋंगवेद में ब्राह्मण शब्द का 14 बार जबकि क्षत्रिय शब्द का 9 बार उल्लेख किया गया है।
  • ऋंगवेदिक काल में मुख्य रूप से दस प्रथा प्रचलित थी।
  • ऋंगवेद में उत्तर भरत के कुल 42 नदियों का उल्लेख है।
  • ऋंगवेद में सरस्वती को सबसे पवित्र नदी माना गया है ।
  • ऋंगवेद में गंगा नदी की चर्चा एक बार जबकि जमुना का तीन बार किया गया है।
  • ऋंगवेदिक काल में धनी व्यक्ति को गोमत कहा जाता था ।
  • इस काल में जीवन भर अविवाहित रहने वाले लड़की को अमाजू कहा जाता था ।
  • इस काल के लोगो का मुख्य भोज्य पदार्थ चावल और जौ था।
  • ऋंगवेदिक काल में सोम को पेय पदार्थ का देवता माना जाता था।
  • इस काल के सबसे प्राचीनतम देवता घौस (आकाश) को माना जाता है ! तथा सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र को माना जाता है।
  • इस काल में गाय को अघ्न्या(न मरने योग्य) कहा जाता था।

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