पिछले साल नवंबर महीने में सरकार ने 9 सदस्यीय समिति का गठन किया था जिसमें उद्योग विशेषज्ञ, सरकारी अधिकारी और अकादमिक विशेषज्ञ शामिल थे, जिसमें इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन को अध्यक्ष मनोनीत किया गया था।
समिति का मुख्य उद्देश्य भारत में उत्पादित आंकड़ों के संग्रह से संबंधित कानून के नियमों का खाका तैयार करना था।
इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन की अध्यक्षता में गठित समिति ने सुझाव दिया है कि देश की विभिन्न घरेलू कंपनियों और संस्थाओं को भारत में उत्पन्न होने वाले गैर-व्यक्तिगत डेटा (Non-Personal Data) के दोहन की अनुमति दी जानी चाहिये।समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में एक नए प्राधिकरण के गठन का भी सुझाव दिया है जिसमें मुख्य रूप से भारत में उत्पन्न गैर-व्यक्तिगत आंकड़ों के उपयोग और दोहन की निगरानी करने की शक्तियां होंगी।फिलहाल समिति की ड्राफ्ट रिपोर्ट को आम जनता की टिप्पणियों और सुझावों के लिए सार्वजनिक रूप से जारी किया गया है।
गैर-व्यक्तिगत डेटा का अर्थ?
व्यक्तिगत डेटा के विपरीत, जिसमें किसी व्यक्ति का नाम, आयु, लिंग, यौन अभिविन्यास, बॉयोमीट्रिक्स और अन्य आनुवंशिक विवरण शामिल होते हैं, गैर-व्यक्तिगत डेटा के माध्यम से किसी व्यक्ति विशिष्ट की पहचान करना संभव नहीं होता है।
सरकार द्वारा अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में गठित समिति ने आंकड़ों के स्रोत के आधार पर गैर-व्यक्तिगत आंकड़ों को काफी हद तक तीन श्रेणियों में विभाजित किया है
1.सार्वजनिक गैर-व्यक्तिगत डेटा – जैसे जनगणना के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़े, नगरपालिका कर प्राप्तियां और सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित सभी कार्यों के निष्पादन के दौरान एकत्र की गई जानकारी
2.समुदाय गैर-व्यक्तिगत डेटा- एक विशिष्ट समूह से संबंधित डेटा, जैसे कि एक ही भौगोलिक स्थिति साझा करने वाले लोगों से डेटा, किसी विशिष्ट स्थान में रहने वाले लोगों से डेटा ।सार्वजनिक परिवहन सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों, दूरसंचार कंपनियों, बिजली वितरण कंपनियों आदि द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े सामुदायिक गैर-व्यक्तिगत आंकड़ों की श्रेणी में आते हैं।
3.निजी गैर-व्यक्तिगत डेटा (निजी गैर-व्यक्तिगत डेटा)- जो कि एक व्यक्ति विशिष्ट के माध्यम से उत्पन्न होता है।