नालंदा प्राचीन और प्रारंभिक मध्यकालीन भारत का एक मठ-सह-शैक्षणिक प्रतिष्ठान मात्र नहीं था। चर्चा करें।

नालंदा

नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन और प्रारंभिक मध्यकालीन भारत का एक प्रमुख मठ-सह-शैक्षणिक प्रतिष्ठान था, लेकिन इसका महत्व केवल इसके शैक्षणिक योगदान तक सीमित नहीं था। नालंदा के बहुआयामी महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से विस्तारित किया जा सकता है:

1. शैक्षणिक केंद्र:

नालंदा एक प्रमुख शैक्षणिक केंद्र था जहाँ विभिन्न विषयों में गहन अध्ययन किया जाता था। यहां दर्शनशास्त्र, धर्म, तर्कशास्त्र, आयुर्वेद, गणित, खगोल विज्ञान, और अन्य वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन होता था। यह एक बहु-विषयक विश्वविद्यालय था जहाँ से हजारों विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे।

2. बौद्ध धर्म का केंद्र:

नालंदा बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था। यहाँ पर बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों, विशेषकर महायान बौद्ध धर्म, का अध्ययन और प्रचार-प्रसार होता था। नालंदा में प्रसिद्ध बौद्ध आचार्यों ने शिक्षा दी और महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की।

3. सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र:

नालंदा केवल शैक्षणिक और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र नहीं था, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र भी था। यहां विभिन्न संस्कृतियों और समाजों के लोग आते थे और आपस में संवाद करते थे। इसने विभिन्न संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया।

4. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र:

नालंदा एक अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र था जहाँ चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्की, श्रीलंका, और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से विद्यार्थी और विद्वान आते थे। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग और इत्सिंग जैसे विद्वान नालंदा में अध्ययन और शोध करने आए थे और उन्होंने नालंदा की प्रशंसा की है।

5. पुस्तकालय और ज्ञान का भंडार:

नालंदा में एक विशाल पुस्तकालय था जिसे “धर्मगंज” कहा जाता था। इस पुस्तकालय में लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ संग्रहीत थे। यह पुस्तकालय ज्ञान का एक अद्वितीय भंडार था, जिसमें विभिन्न विषयों पर ग्रंथ उपलब्ध थे। नालंदा के पुस्तकालय ने ज्ञान के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

6. शिल्पकला और स्थापत्य कला:

नालंदा के स्थापत्य कला और शिल्पकला का भी विशेष महत्व है। इसके स्तूप, विहार, मठ, और अन्य संरचनाएं भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। नालंदा की वास्तुकला ने भविष्य की स्थापत्य परंपराओं को प्रभावित किया।

निष्कर्ष:

नालंदा विश्वविद्यालय न केवल एक शैक्षणिक प्रतिष्ठान था, बल्कि यह बौद्ध धर्म का केंद्र, एक सांस्कृतिक और सामाजिक मंच, अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र, ज्ञान का भंडार, और शिल्पकला और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण था। इसके बहुआयामी योगदान ने इसे प्राचीन और प्रारंभिक मध्यकालीन भारत का एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण केंद्र बनाया।

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