नेहरू के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चिंतन का विवरण दीजिए।

BPSC 69TH मुख्य परीक्षा प्रश्न अभ्यास  – भारत का आधुनिक इतिहास (G.S. PAPER – 01)

स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में आधुनिक भारत के स्वतंत्र विकास की दिशा में जवाहरलाल नेहरू ने काफी कार्य किया जो कि सराहनीय है । शोषण से मुक्त एक नए भारत के निर्माण के लिए और साम्राज्यवाद के उत्पीड़न से मुक्त एक नए विश्व के सृजन के लिए उन्होंने अति महत्वपूर्ण सराहनीय कार्य किए हैं।

नेहरू के चिंतन पर प्रभाव उदारवाद की पाश्चात्य अवधारणा से नेहरू सबसे अधिक प्रभावित थे। उन्होंने उदारवाद से अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता व्यक्ति की स्वतंत्रता की गरिमा स्वतंत्र निर्वाचन और संसदीय सरकार की अवधारणा को आत्मसात किया था। गांधी जी के व्यक्तित्व ने भी नेहरू जी को प्रभावित किया था । उन्होंने सदैव गांधी जी के प्रिय अनुयाई के रूप में राष्ट्रीय आंदोलन के समय कार्य किया यद्यपि राजनीतिक मुद्दों तथा भारतीय समाज के पुनर्निर्माण के संबंध में दोनों के विचारों में मतभेद पाया गया था । प्रगतिशील तथा साम्यवादी विचारों के उद्भव के युगपुरुष कार्ल मार्क्स तथा लेलिन के अध्ययन ने भी उन्हें काफी प्रभावित किया था।  परंतु वे सोवियत संघ द्वारा अपनाए गए साम्यवादी व्यवस्था और अमेरिका द्वारा अपनाए गए पूंजीवादी व्यवस्था से असहमत थे।

नेहरू और समाजवाद

नेहरू लोकतांत्रिक समाजवाद की संकल्पना से प्रभावित है जिसमें क्षमता की स्थापना के लिए उन्होंने रूसी क्रांति की स्थापना पर विकास की आवश्यकता पर बल दिया। उनका मानना था कि व्यक्ति की गरिमा या समानता को सुनिश्चित करने हेतु पूंजीवादी पद्धति पर आधारित समाज को समाप्त करना होगा । नेहरू कहते थे कि बढ़ती हुई संपत्ति तथा उत्पादन से उपेक्षित किए गए समाजवाद का अर्थ यह होगा कि गरीबी को समान रूप से बांटना अर्थात गरीबी फैलाना । उनका मानना था कि संपत्ति का उत्पादन करना चाहिए और बाद में उसे समाज में समान रूप से विभाजित कर देना चाहिए । जिससे समाज में समतावाद का प्रारूप तैयार किया जा सके। उनका कहना था कि सभी लोगों को एक समान नहीं बनाया जा सकता परंतु सभी को कम-से-कम समान अवसर तो दिया हीरा सकता है।

नेहरू व्यक्ति स्वतंत्रता को बाधित किए बिना क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करने के हिमायती थे जिसके लिए उन्होंने नियोजन का मार्ग अपनाया । उनके द्वारा सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय विस्तार सेवाओं का शुभारंभ कर के ग्रामीण क्षेत्र में समाजवादी समाज के विस्तार का बीड़ा उठाया गया । जिससे सहकारिता के सिद्धांत पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास हो सके ।नेहरू ने एक वर्ग की समाज की कल्पना की थी ।अपनी कल्पना को सरकार साकार करने हेतु उन्होंने तीव्र उद्योगीकीकरण, रोजगार के अवसरों का सृजन, आर्थिक सत्ता का विकेंद्रीकरण, धन एवं आय की विषमताओं में कमी आदि उद्देश्यों का समावेश द्वितीय पंचवर्षीय योजना में किया था। इस प्रकार नेहरू ने एक ऐसे व्यवहारिक प्रयोगवादी समाजवाद की संकल्पना प्रस्तुत की जो भारत को समय अनुकूल परिस्थितियों में उसकी जरूरतों को पूर्ण कर सके।

लोकतंत्र पर नेहरू का चिंतन

नेहरू जी के अनुसार लोकतंत्र अनुशासन सहिष्णुता और एक दूसरे के सम्मान की भावना पर आधारित है। आजादी दूसरों की आजादी की ओर सम्मान की दृष्टि से देखती है । उनका मत था कि लोकतंत्र पूर्णरूपेण राजनीतिक मामला नहीं है । लोकतंत्र का अर्थ है सहिष्णुता न केवल अपने मत वाले लोगों के बारे में सहिष्णु होना बल्कि अपने विरोधियों के प्रति सहिष्णु होना । इस प्रकार नेहरू की लोकतंत्र की अवधारणा लोकतंत्र की पश्चिमी अवधारणा से बिल्कुल भिन्न है।  उनका विचार था कि वर्तमान में उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद पूर्णता अनुचित अपमानजनक पंत है। उनका मानना था कि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में केवल चुनाव की बात नहीं है , लोकतंत्र का सही अर्थ होना चाहिए – सामाजिक आर्थिक विषमता का उन्मूलन जहां अनुशासन बंद तथा स्वयं प्रेरित होती हो क्योंकि बिना अनुशासन के लोकतंत्र निशान है। वे लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की प्रशंसा करते थे। परंतु इस बात से सहमत नहीं थे कि बहुसंख्यक लोग सदैव सही होते हैं । उनके विचार से संसदीय लोकतंत्र में अनेक गुण अपेक्षित हैं अर्थात उसमें सबसे पहले सक्षम होना चाहिए कार्य के प्रति निश्चित रूप में श्रद्धा होनी चाहिए आस्था होनी चाहिए । विशाल सहयोग की भावना होनी चाहिए आत्म अनुशासन होना चाहिए इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि सम्मान के साथ हार जीत कैसे ग्रहण करते हैं।

नेहरू और धर्मनिरपेक्षता

नेहरू धर्म में व्याप्त पुरानी रूढ़ियां भ्रमित करने वाली कल्पना और अंधविश्वासों से बहुत ही दुखी थे । नेहरू के अनुसार सामाजिक जीवन और व्यक्ति की समस्याएं सबसे बड़ी समस्याएं है। वे समस्याएं इस प्रकार है – जैसे संतुलित शांत जीवन का ना होना, व्यक्ति के जीवन में एक अनुचित संतुलन होना, समूह और व्यक्ति के संबंधों में सामंजस्य नहीं होना और गलत तरीके से उच्च बनने की तीव्र इच्छा होना आदि।

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का अर्थ सभी राष्ट्रों को समान रुप में सम्मिलित किया जाना है प्रत्येक मनुष्य को अपने इच्छा के अनुरूप धर्म चुनने का अधिकार होना चाहिए नेहरू धार्मिक मामलों में राज्य की तथा के पक्षधर थे उन्होंने लिखा है मुझे विश्वास है कि भावी भारत की सरकारें इस अर्थ में धर्मनिरपेक्ष होंगी कि वह अपने को किसी विशेष धार्मिक विश्वास के साथ नहीं जोड़ेंगे नेहरू एक समान नागरिक संहिता के हिमायती थे उनका मानना था कि धर्मनिरपेक्षता के आदर्श में विभिन्न समुदायों के लिए विभिन्न कानून का होना एक अभिशाप है संभवत नेहरू इस धर्म निरपेक्षता के माध्यम से एक सुधीर तथा अखंड भारत की कल्पना कर रहे थे।

नेहरू और मिश्रित अर्थव्यवस्था

नेहरू की संकल्पना में राष्ट्र की अर्थ व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र एक दूसरे के साथ मिलकर राष्ट्र के विकास में सहायक सिद्ध हो अर्थशास्त्रियों ने इसी अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा है नेहरू का विचार था कि जिन राष्ट्रों के पास वित्तीय एवं तकनीकी साधन अत्यधिक सीमित है उनके लिए अर्थव्यवस्था का पूर्णता राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए उपयोगी नहीं हो सकता और खासकर भारत जैसे विकासशील देश के लिए नेहरू आधारभूत एवं भारी उद्योगों तथा प्रतिरक्षा पर राज्य के पूर्ण नियंत्रण के पक्षधर थे और शेष उद्योगों जिनके कारखाने व्यक्तिगत स्वामित्व में है उसी भांति रहने देने के पक्षधर में थे परंतु उन्होंने नवीन कारखानों की स्थापना का अधिकार राज्य के पास सुरक्षित रखने को कहा इस प्रकार उन्होंने भारत की तत्कालीन परिस्थितियों में उत्पादन के साधनों को व्यक्तिगत स्वामित्व में छोड़ना उचित समझा और राष्ट्रीय साधनों को नवीन योजनाओं में लगाकर श्रेष्ठ कर्म आना उनके विचार से निजी क्षेत्र को सार्वजनिक क्षेत्र के सहयोग से कार्य करना चाहिए तथा सरकारी नियंत्रण में रहना चाहिए इस प्रकार नेहरू का समाजवाद अर्थव्यवस्था पर राज्य के पूर्ण नियंत्रण की वकालत करता है वह सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार किए जाने के पक्षधर थे जिसमें उनका उद्देश्य जनमानस का कल्याण एवं एक समतावादी समाज की स्थापना करना था

नेहरू का अंतरराष्ट्रीयवाद

नेहरू का मानना था कि हमें अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विकास और विस्तार करना चाहिए हमें नए नए राष्ट्रीय को मित्र बनाना चाहिए साथ ही यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने पुराने मित्रों को ना भूले नेहरू विश्व के प्रत्येक राष्ट्र के विश्व घटनाक्रम में सक्रिय भागीदारी के पक्षधर और अलगाववाद के कट्टर विरोधी थे भारत के वर्तमान विश्व संबंधों की रूपरेखा वास्तव में नेहरू द्वारा ही बनाई गई है एशिया तथा अफ्रीका की मित्रता रूस तथा भारत मैत्री संबंध संयुक्त राष्ट्र संघ एवं राकुल में भारत की सदस्यता सभी नेहरू के अंतरराष्ट्रीय वाद के ही परिणाम है उनकी अंतरराष्ट्रीय निधि की सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान गुटनिरपेक्षता में है

 

 

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