बिहार विशेष – भस्मकूट पर्वत पर स्थित शक्तिपीठ मां मंगला गौरी मंदिर क्यूँ है खास

ख़बरों में क्यूँ : 

नवरात्र के मौके पर प्रत्येक देवी स्थानों पर भक्तों की भारी भीड़ इकट्ठा हो रही है. ऐसे में बिहार के गया शहर से कुछ ही दूरी पर भस्मकूट पर्वत पर स्थित शक्तिपीठ मां मंगला गौरी मंदिर चर्चा में बना हुआ है . मान्यता है कि यहां मां सती का वक्ष स्थल गिरा था. जिस कारण यह शक्तिपीठ पालनहार पीठ के रूप में प्रसिद्ध है.

प्रमुख बिंदु : 

  • इस शक्तिपीठ की विशेषता यह है कि मनुष्य अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्ध कर्म यहां संपादित कर सकता है.
  • पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान भोले शंकर जब अपनी पत्नी सती का जला हुआ शरीर लेकर तीनों लोकों में उद्विग्न होकर घूम रहे थे, तो सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मां सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटा था. इसी क्रम में मां सती के शरीर के टुकड़े देश के विभिन्न स्थानों पर गिरे थे. जिसे बाद में शक्तिपीठ के रूप में जाना गया. इन्हीं स्थानों पर गिरे हुए टुकड़े में वक्ष का एक टुकड़ा गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा था.
  • मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी सच्चे मन से मां की पूजा व अर्चना करते हैं, मां खुश होकर उसकी मनोकामना को पूर्ण करती है. ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा करने वाले किसी भी भक्त को मां मंगला खाली हाथ नहीं भेजतीं.
  • यहां गर्भगृह में ऐसे तो काफी अंधेरा रहता है, परंतु यहां वर्षों से एक दीप प्रज्वलित हो रहा है. कहा जाता है कि यह दीपक कभी बुझता नहीं है. मां मंगला गौरी का इतिहास हजारों साल पुराना है. कहा जाता है माता सती का अंग विभिन्न पर्वतों पर गिरा था. उस 108 अंग में से एक अंग गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा था, जो पालन पीठ के रूप में विराजमान है. इसलिए कहा जाता है कि यहां माता अपने भक्तों का पालन करती है.
  • इस मंदिर का उल्लेख, पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण और अन्य लेखों में मिलता है. हिंदू संप्रदाय में इस मंदिर में शक्ति का वास माना जाता है. इस मंदिर में उपा शक्ति पीठ भी है, जिसे भगवान शिव के शरीर का हिस्सा माना जाता है.
  • इस शक्तिपीठ को असम के कामरूप स्थित मां कमाख्या देवी शक्तिपीठ के समान माना जाता है.

 

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