मूल अधिकार
मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं जो व्यक्ति के विकास के लिए मौलिक और आवश्यक हैं, ये अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रगति को सुनिश्चित करते हैं। मौलिक अधिकारों को सभी नागरिकों के मूल मानव अधिकारों के रूप में परिभाषित किया गया है। इन सभी लोगों को धर्म, जाति, लिंग और पंथ आदि के भेद के बिना समान अधिकार प्राप्त होते है।
मूल अधिकार : ऐतिहासिक पहलू
मौलिक अधिकारों का पहला विकास ब्रिटेन में हुआ था जब 1215 ईस्वी में, सम्राट जॉन को ब्रिटिश लोगों से प्राचीन स्वतंत्रता की मान्यता के लिए मैग्ना कार्टा पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था। इसके बाद, 1689 ईस्वी में, ब्रिटिश जनता ने सम्राट को अधिकार के बिल पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया, जो समय-समय पर उनके सम्राटों द्वारा जनता को दिए गए थे।
पहले फ्रांस की राज्य क्रांति ने दुनिया को स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का संदेश दिया। मानवाधिकार ’की संवैधानिक मान्यता 1789 ईस्वी में फ्रांसीसी संविधान में पेश की गई थी। 1791 ई. में अमेरिकी संविधान में चार्टर ऑफ राइट्स की घोषणा की गई थी। भारत में मौलिक अधिकारों की पहली मांग 1895 ई. के संविधान विधेयक में की गई थी। वर्ष 1925 में, श्रीमती ऐनी बेसेंट के ‘कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल’ और वर्ष 1928 में, ‘नेहरू रिपोर्ट’ में मौलिक अधिकारों के लिए प्रावधान किया गया था। वर्ष 1931 में कराची अधिवेशन (राष्ट्रपति वल्लभाई पटेल) में, कांग्रेस ने घोषणा पत्र में मौलिक अधिकारों की मांग की थी। जवाहरलाल नेहरू ने मूल अधिकारों का निर्माण किया। इसके बाद वर्ष 1945 में तेज बहादुर सप्रू की रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को शामिल किया जाना चाहिए। अंतत:, सलाहकार समिति और उप-समिति की सिफारिशों के आधार पर, मौलिक अधिकारों को संविधान में शामिल किया गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में मानव अधिकारों की घोषणा |
मौलिक अधिकारों के व्यापक संशोधन को संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को मंजूरी दी गई है। समानता के साथ सार्वजनिक सेवा प्राप्त करने का अधिकार अनुच्छेद 21 में चर्चा की गई है। इसी प्रकार, अनुच्छेद 25 में भोजन के अधिकार की बात की गई है. |
मूल अधिकारों का वर्गीकरण
भारतीय संविधान सभा के निर्माण के समय संविधान सभा ने सात प्रकार के मौलिक अधिकारों का समावेश किया था, लेकिन संपत्ति के अधिकार को 1978 में 44 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप मौलिक अधिकार की संख्या घटकर 6 हो गए। , जो निम्नलिखित है।
- अनुच्छेद :- 12 परिभाषा
- अनुच्छेद :- 13 मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ
1) समता का अधिकार
- अनुच्छेद :- 14 विधि के समक्ष समता
- अनुच्छेद :- 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेद
- अनुच्छेद :- 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता
- अनुच्छेद :- 17 अस्पृश्यता का अंत
- अनुच्छेद :- 18 उपाधियों का अंत
2) स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद :– 19 वाक् स्वतन्त्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
- अनुच्छेद :- 20 अपराधों के लिए दोषसिध्दि के सम्बन्ध में संरक्षण
- अनुच्छेद :- 21 प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का सव्रेक्षण
- अनुच्छेद :- 21 (A) शिक्षा का अधिकार
- अनुच्छेद :- 22 कुछ दशाओं में गिरफ़्तारी और विरोध से संरक्षण शोषण
3) शोषण के विरुध्द अधिकार
- अनुच्छेद :- 23 मानव के दुर्व्यापार और बलात श्रम का प्रतिषेद
- अनुच्छेद :- 24 कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध
4) धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार
- अनुच्छेद :- 25 अन्तः कारण की और धर्म के अबाध रूप से मानने आचरण और प्रचार करने की स्वतन्त्रता
- अनुच्छेद :- 26 धार्मिक कार्यों के प्रबवध की स्वतन्त्रता
- अनुच्छेद :- 27 किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृध्दि के लिए करो के संदाय के बारे में स्वतन्त्रता
- अनुच्छेद :- 28 कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थिति होने के बारे में स्वतन्त्रता
5) संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
- अनुच्छेद :- 29 अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
- अनुच्छेद :- 30 शिक्षा संख्याओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
- अनुच्छेद :- 31 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम (संपत्ति का अनिवार्य अर्जन), 1978 की धारा 6 द्वारा निरसित
- अनुच्छेद :- 31 (A) सम्पदाओं आदि के अर्जन के लिए उपलब्ध करने वाली निधियों की व्यावृति
- अनुच्छेद :- 31 (B) कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण
- अनुच्छेद :– 31 (C) कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृति
- अनुच्छेद :- 31 (D) 43 वें संविधान संशोधन अधिनियम (राष्ट्र विरोधी क्रियाकलाप के सम्बन्ध में विधियों की व्यावृति ), 977 की धारा 2 द्वारा निरसित
6) सांविधानिक उपचारों का अधिकार
- अनुच्छेद :- 32 इस भाग द्वारा प्रदत अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
- अनुच्छेद :– 32 (A) 43 वें संविधान संशोधन अधिनियम (राज्य विधियों की सांविधानिक वैधता पर अनुच्छेद 32 के अधीन कार्यवाहियों ने विचार न किया जाना), 1977 की धारा 3 द्वारा निरसित
- अनुच्छेद :- 33 इस भाग द्वारा अधिकारों का बलों आदि को लागु होने में, उपरान्तरण करने की संसद की शक्ति
- अनुच्छेद :- 34 जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत है, तब इस भाग द्वारा प्रदत अधियकरों पर निर्बधन
- अनुच्छेद :- 35 इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान
मूल अधिकार से सम्बंधित अनुच्छेद
अनुच्छेद | सम्बंधित तथ्य |
अनुच्छेद 12 | परिभाषा |
अनुच्छेद 13 | मूल अधिकारों का अल्पीकरण |
अनुच्छेद 14 | विधि के समक्ष समता |
अनुच्छेद 15 | धर्म,जाति,या लिंग के आधार पर विभेद पर प्रतिषेद |
अनुच्छेद 16 | लोक नियोजन के विषय में अवसर की क्षमता |
अनुच्छेद 17 | स्पृयता का अंत |
अनुच्छेद 18 | उपाधियों का अंत |
अनुच्छेद 19 | वाक् स्वतन्त्रा |
अनुच्छेद 20 | अपराधो के सम्बन्ध में संरक्षण |
अनुच्छेद 21 | प्राण और दैहिक स्वतन्त्रा के संरक्षण में |
अनुच्छेद 21A | शिक्षा का अधिकार |
अनुच्छेद 22 | शोषण के विरुध्द अधिकार |
अनुच्छेद 23 | मानक के दुर्व्यवार पर निषेध |
अनुच्छेद 24 | कारखानों में बालकोंके नियोजन पर पर्तिबंध |