राज्यों का पुनर्गठन
भारत की वर्तमान संघीय व्यवस्था में, राज्यों को संघ के सदस्यों के रूप में अपनाया गया है, और सभी राज्य सत्ता के विभाजन में संघ के भागीदार हैं। केंद्र शासित प्रदेश उन क्षेत्रों को संदर्भित करता है जिन पर भारत की संप्रभुता का विस्तार होता है।
अनुच्छेद 1 के अनुसार, भारत राज्यों का संघ होगा, भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संघीय के स्थान पर संघ शब्द का उपयोग किया था। इसका मतलब यह है कि राज्यों को भारत से अलग होने का अधिकार नहीं है।
अनुच्छेद 2 के अनुसार, संसद कानून द्वारा उस राज्य को स्थापित करने में सक्षम होगी जो उसने सामिल किया है, नियमों और शर्तों पर।
अनुच्छेद 3 के तहत, संसद को एक नया राज्य स्थापित करने और मौजूदा राज्य के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों को बदलने की शक्ति है।
राज्य पुनर्गठन आयोग
राज्यों की श्रेणी में राज्यों का विभाजन तत्कालीन उपयोगिता के आधार पर संविधान द्वारा किया गया था। लगभग हर कोई इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं था। इससे देश के विभिन्न हिस्सों से, विशेषकर दक्षिण से मांग उठने लगी कि भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया जाना चाहिए! जिसके कारण सरकार ने समय-समय पर विभिन्न आयोगों का गठन किया :
धर आयोग :-
जून 1948 में, धर आयोग का गठन भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए किया गया था। इस आयोग ने दिसंबर 1948 में कहा कि नए राज्यों के निर्माण का आधार भाषा नहीं बल्कि प्रशासनिक दक्षता होनी चाहिए।
जे. वी. पी. समिति:-
दिसंबर 1948 में, तीन कांग्रेस नेताओं जवाहरलाल नेहरू, बल्लभभाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया को मिलाकर एक समिति बनाई गई। समिति ने अप्रैल 1949 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, इस समिति ने प्रशासनिक दक्षता के साथ एक नए राज्य के गठन का आधार रखा।
फजल अली आयोग:-
1953 में, भारत सरकार ने पहली बार भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश का गठन किया, जिसके कारण एक आंदोलन शुरू किया गया था। सरकार ने फ़ज़ल अली की अध्यक्षता में एक नए राज्य के गठन के बारे में दिसंबर 1953 में एक आयोग का गठन किया। इस आयोग के अन्य सदस्य हृदयनाथ कुंजरू और केएम पणिक्कर थे। इस आयोग ने वर्ष 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस आयोग ने ‘एक भाषा एक राज्य’ के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया और नए राज्य के गठन के लिए निम्नलिखित आधारों को बताया: –
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता
- सांस्कृतिक व भाषायी तत्व
- प्रशासनिक कार्य कुशलता
- जनकल्याण