सिंधु घाटी सभ्यता
सबसे पहले, चार्ल्स मेन्सेर्न ने 1826 ई. में लिखा था कि हड़प्पा के नीचे एक प्राचीन सभ्यता का स्थल दफन था. भारतीय पुरातत्व के पिता माने जाने वाले अलेक्जेंडर कनिंघम ने यहां का दौरा किया, लेकिन स्थल के महत्व को समझा नहीं जा सका। वर्ष 1921 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अध्यक्ष जॉन मार्शल के निर्देशन में हड़प्पा स्थल का ज्ञान हुआ। पहले हड़प्पा की खोज के कारण इसका नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा। इस सभ्यता के उद्भव को उन ग्रामीण संस्कृतियों के संदर्भ में समझा जा सकता है जो 6000 ईसा पूर्व और 4000 ईसा पूर्व के बीच उत्तर पश्चिम में एक बड़े क्षेत्र में अवस्थित हुई।
सिंधु सभ्यता के अंतर्गत पंजाब, सिंधु, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश का सीमांत भाग शामिल था ।
यह सभ्यता उत्तर में जम्मू के मांडा से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने पर स्थित दैमाबाद और पश्चिम बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर तक फैली हुई थी। समूचा क्षेत्र त्रिभुजाकार है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 12,99,600 वर्ग किमी० में है. जो मिस्र एवं मेसोपोटामिया दोनों से बड़ा है।
सिंधु घाटी सभय्ता के प्रमुख स्थल
1) हड़प्पा :- हड़प्पा सभ्यता की खोज वर्ष 1921 में दयाराम साहनी ने की थी। इसकी वर्तमान भौगोलिक स्थिति रावी नदी के तट पर पाकिस्तान के मोंटगोमरी में है। हड़प्पा से प्राप्त प्रमुख साक्ष्य में सोलह भट्टिया, एक धोती पहने हुए मूर्ति, मछुआरों के वतन पर चित्र, एक शंख पर बने बैल आदि शामिल हैं।
2) मोहनजोदड़ो :- मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है “मृतकों का टीला”। इसकी खोज वर्ष 1922 में राखालदास बनर्जी ने की थी। इसकी वर्तमान भौगोलिक स्थिति लरकाना, पाकिस्तान में सिंधु नदी के तट पर है। इससे प्राप्त मुख्य प्रमाणों में ‘कुम्हार के छः भट्टे ,सूती कपड़ा ,शतरंज की गोलिया, पशुपति शिव के अंकन की मुहर, आदि शामिल हैं।
3) कालीबंगा :- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ “काले रंग की चूरी” है। इसकी खोज वर्ष 1953/60 में अमलानंद घोष ने किया था। इसका वर्त्तमान भौगोलिक स्थिति घग्घर नदी, राजस्थान है। इससे प्राप्त प्रमुख साक्ष्य हल द्वारा जूते खेत,बेलनाकार मुहर,ऊँट की हड्डियां, कच्ची एवं अंलकृत ईंट है।
4 ) चन्हूदड़ो :- चन्हूदड़ो का खोज वर्ष 1931 में एन जी मजूमदार ने किया था । इसका वर्त्तमान भौगोलिक स्थिति सिंधु नदी ,सिंधु ,पाकिस्तान है । यहाँ से प्राप्त प्रमुख साक्ष्य मुहर निर्माण केंद्र, मिट्टी का बनी बैलगाड़ी का प्रतिरूप, मनके का कारखाना, एवं दवात है।
5) लोथल :- लोथल का खोज वर्ष 1957 में रंगनाथ राव ने किया था। इसका वर्त्तमान भौगोलिक स्थिति भोगवा नदी, गुजरात है। इससे प्राप्त प्रमुख साक्ष्य सोने का मनके, मनका कारखाना, गोदीवारा (बंदरगाह), युग्म शवाधान, धान की खेती है।
6) बनावली :- बनावली का खोज वर्ष 1974 /77 में आर एस बिष्ट ने किया था । इसका वर्त्तमान भौगोलिक स्थिति रंगोई नदी, हरियाणा है। यहाँ से प्राप्त प्रमुख साक्ष्य स्वर्णपट्ट,तांबे की बनी मछली पकड़ने की बंसी, मिट्टी से बने हल की प्रतिरूप, प्रतिरक्षा दीवार के बाहर गहड़ी और चौड़ी खाई है।
7) रोपड़ :- रोपड़ का खोज वर्ष 1953 -54 में यज्ञदत्त ने किया था । इसका वर्तमान भौगालिक स्थिति सतलज नदी, पंजाब है । यहाँ से प्राप्त प्रमुख साक्ष्य तांबे की कुल्हाड़ी, शंख की चूड़ियाँ, कुत्ते की मालिक के साथ दफनाने का साक्ष्य मिला है ।
8) सुरकोटड़ा :- सुरकोटड़ा का खोज वर्ष 1954 में जे पी जोशी ने किया था। इसका वर्त्तमान भौगोलिक स्थिति कच्छ, गुजरात है। यहाँ से प्राप्त प्रमुख साक्ष्य घोड़े की हड्डियाँ, कलश है ।
9) धौलावीरा :- धौलावीरा का शाब्दिक अर्थ होता है “सफेद कुआँ”।धौलावीरा का खोज वर्ष 1959 में बी बी लाल ने किया था । इसका वर्त्तमान भौगोलिक स्थित खदिर बेत नदी,कच्छ, गुजरात है । यहाँ से प्राप्त प्रमुख साक्ष्य तीन भागों में विभाजित एकमात्र शहर, नागरिक उपयोगी के लिए सबसे बड़ा अभिलेख, खेल का मैदान पत्थर की बनी नेवले की मूर्ति है।
10) बालाकोट :- बालाकोट का खोज वर्ष 1974-77 में आर एस बिष्ट ने किया था। इसका वर्त्तमान भौगोलिक स्थिति अरब सागर, बलूचिस्तान, पाकिस्तान है। यहाँ से प्राप्त प्रमुख साक्ष्य पूर्व हड़प्पा के अवशेष भवन निर्माण के लिए कच्ची ईंटों का प्रयोग,सीपों की कार्यशाला है।
हड़प्पा सभ्यता में आयतित होने वाले वस्तु
आयातित वस्तुएँ | स्थल /क्षेत्र |
सोना | अफगानिस्तान, फारस, कर्नाटक |
चाँदी | ईरान, अफगानिस्तान मेसोटामिया |
तांबा | खेतड़ी ( राजस्थान ) बलूचिस्तान |
टिन | ईरान, अफगानिस्तान |
सेलखड़ी | बलूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात |
हरित मणि | दक्षिण, भारत |
शंख एवं कौड़ियां | सौराष्ट्र (गुजरात ), दक्षिण भारत |
नील रत्न | बदख्शां (अफगानिस्तान ) |
शिलाजीत | हिमालय क्षेत्र |
फिरोजा | ईरान |
स्लेट | कांगड़ा (हिमालय प्रदेश ) |
सीसा | ईरान, राजस्थान ,अफगानिस्तान,दक्षिण भारत |
महत्वपूर्ण तथ्य
- मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजानिक स्थल विशाल स्नानागार है। जिसका जलस्य दुर्ग के टीले में है, यह11.88 मी लम्बा,7.01 मी चौड़ा और 2.43 मी गहरा है।
- सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगो को दिया जाता है।
- दो फसलों की खेती,हल का प्रयोग,फसलों की विविधता सिंधु सभ्यता की दें है।
- सिंधु सभ्यता के लोगों को कूबड़ वाला साँड सबसे प्रिय पशुपालन है।
- सिंधु सभ्यता चन्हूदड़ों तथा लोथल में मनके बनाने का कार्य होता था।
- सिंधु सभ्यता पकी मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण चिकोटी पध्दति से किया जाता था।
- सिंधु सभ्यता लिपि भावचित्रात्मक है, यह लिपि दाई से बाई ओर तथा पुनः बाई से दाई ओर लिखी जाती थी।
- भारत में चाँदी सर्वप्रथम सिंधु सभ्यता में पाई गई है।
- सिंधु सभ्यता की मुहरें बेलनाकार, वर्गाकार आयताकार एवं वृताकार रूप में मिली है।
- सिंधु सभ्यता से बड़ी संख्या में ताबीज मिले है, जिससे उनके अन्ध्विश्वासों का पता चलता है।
- सिंधु सभ्यता की प्रमुख देन में दशमलव पध्दति पर आधारित माप- तौल प्रणाली,नगर नियोजन तथा नालियों की व्यवस्था, बहुदेववाद का प्रचलन, मातृदेवी की पूजा, शिव पूजा, वृक्ष पूजा लिंग एवं योनि पूजा, योग का प्रचलन है।
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
कालीबंगा | घग्घर नदी,राजस्थान | आमलानन्द घोस |
कोटदीजी | सिंधु नदी,सिंध,पाकिस्तान | फजल अहमद |
रोपड़ | सतलज नदी ,पंजाब | यगदत्त शर्मा |
रंगपुर | मादर नदी ,गुजरात | रंगनाथ राव |
सुरकोटड़ा | कच्छ , गुजरात | जे पी जोशी |
लोथल | भोगवा नदी गुजरात | रंगनाथ राव |
आलमगीरपुर | हिंडन नदी उत्तेर प्रदेश | यगदत्त शर्मा |
धौलावीरा | खदिर वेत नदी,कच्छ ,गुजरात | बी बी लाल ,आर एस विष्ट |
राखीगढ़ी | घग्घर नदी ,हरयाणा | सूरजभान |
बनावली | रंगोई नदी ,हरियाणा | आर एस विष्ट |