
पैपल कॉन्क्लेव का समापन 8 मई 2025 को हुआ, जब अमेरिकी कार्डिनल रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट को पोप लियो-14 (Pope Leo-14) के रूप में चुना गया। वह अमेरिका से पोप (Pope) बनने वाले पहले कार्डिनल हैं और इस नाम को अपनाने वाले इतिहास के पहले पोप (Pope) भी हैं। उनकी नियुक्ति कैथोलिक चर्च के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है, जो कई दृष्टियों से उल्लेखनीय है। पोप लियो-14 (Pope Leo-14) का जन्म 14 सितंबर 1955 को इलिनोय, अमेरिका में हुआ था। वे पोप फ्रांसिस (Pope Francis) के करीबी सहयोगी रहे हैं
Pope Leo-14 का चुनाव: सिर्फ दो दिन में हुआ फैसला
इस बार का कॉन्क्लेव सिर्फ दो दिनों में समाप्त हो गया, जो 1900 के बाद से सिर्फ पाँचवीं बार हुआ है। कुल 133 कार्डिनल्स ने भाग लिया, और प्रीवोस्ट को दो-तिहाई बहुमत (89 वोट) के साथ चुना गया।
सफेद धुएं के माध्यम से यह संकेत दिया गया कि नया पोप चुन लिया गया है। जैसे ही सिस्टीन चैपल की चिमनी से सफेद धुआं निकला, वेटिकन में उपस्थित 45,000 से अधिक श्रद्धालुओं ने खुशी से ताली बजाकर उनका स्वागत किया।
Papal Conclave : पोप चुने जाने की गुप्त और परंपरागत प्रक्रिया
कॉन्क्लेव लैटिन शब्द “cum clave” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “चाबी के साथ बंद।” यह एक गुप्त धार्मिक प्रक्रिया है, जो 13वीं सदी से चली आ रही है।
वोटिंग प्रक्रिया इस प्रकार होती है:
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प्रत्येक कार्डिनल को एक बैलेट दिया जाता है।
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वह उसमें अपने पसंदीदा उम्मीदवार का नाम लिखता है।
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बैलेट को एक प्लेट में डालकर तीन अधिकारी उन्हें गिनते हैं।
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दो-तिहाई बहुमत मिलने पर वह व्यक्ति पोप बनता है।
यदि बहुमत नहीं मिलता, तो बैलेट को जलाकर काला धुआं निकाला जाता है।
वोटिंग नियम और सुरक्षा प्रावधान
कॉन्क्लेव के दौरान:
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कार्डिनल्स के पास मोबाइल फोन, इंटरनेट और न्यूज़पेपर नहीं होते।
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सिस्टम चैपल को पूरी तरह सील कर दिया जाता है।
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सभी सहयोगी जैसे डॉक्टर, गार्ड, तकनीशियन आदि गोपनीयता की शपथ लेते हैं।
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सिग्नल ब्लॉकर लगाए जाते हैं ताकि कोई जानकारी बाहर न जा सके।
पोप (Pope) के नाम चुनने की परंपरा
6वीं सदी से चली आ रही परंपरा के अनुसार, जब कोई कार्डिनल पोप (Cardinal Pope) बनता है, तो उसे एक नया नाम अपनाना होता है। यह नाम अक्सर किसी पूर्व पोप (Pope) या संत के नाम पर होता है। हालांकि, पोप (Pope) के पास यह स्वतंत्रता होती है कि वह कोई भी नाम चुन सकता है।
Pope Leo-14 ने ऐसा नाम चुना है जिसे पहले किसी पोप ने नहीं अपनाया था।
इतिहास की झलक: दो पोप का विवाद और दो-तिहाई बहुमत की अनिवार्यता
सन् 1159 में दो पोप चुने गए थे – पोप अलेक्जेंडर-3 और पोप विक्टर-4। इससे चर्च में गंभीर विवाद हुआ। इसी के बाद तय हुआ कि नए पोप के लिए कम से कम दो-तिहाई बहुमत जरूरी होगा, ताकि सभी कार्डिनल्स के बीच अधिकतम सहमति हो।
क्या होता है जब पोप (Pope) नहीं चुना जाता?
यदि तीन दिन तक कोई पोप (Pope) नहीं चुना जाता:
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एक दिन का विराम लिया जाता है।
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फिर वोटिंग फिर से शुरू होती है।
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अगर 33 दौर के बाद भी कोई पोप नहीं चुना जाता, तो शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच सीधे मुकाबले का निर्णय लिया जाता है।
कॉन्क्लेव से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियाँ
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सबसे लंबा कॉन्क्लेव: 1268 से 1271 तक – लगभग 3 साल, जब पोप ग्रेगरी-X चुने गए।
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सबसे छोटा कॉन्क्लेव: 1503 में – केवल 10 घंटे में पोप पायस-III का चयन हुआ।
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21वीं सदी में अब तक हुए दो कॉन्क्लेव:
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2005: पोप बेनेडिक्ट XVI – 4 राउंड में चुने गए
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2013: पोप फ्रांसिस – 5 राउंड में चुने गए
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पोप लियो-14 का चुनाव कैथोलिक चर्च के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह दर्शाता है कि चर्च धीरे-धीरे और अधिक समावेशी और वैश्विक दृष्टिकोण की ओर अग्रसर है। उनके विचार और नेतृत्व शैली, उनके पूर्ववर्ती पोप फ्रांसिस की तरह, समर्पण, दया और वैश्विक जिम्मेदारी पर केंद्रित है।
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