
अप्रैल 2025 में, विश्व की सबसे बड़ी परमाणु संलयन (Nuclear Fusion) परियोजना — अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (ITER) — ने अपनी मुख्य चुंबकीय प्रणाली के विकास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह परियोजना दक्षिणी फ्रांस में स्थापित की जा रही है और इसमें भारत समेत दुनिया के प्रमुख देश शामिल हैं।
भारत की उल्लेखनीय भूमिका
भारत ने इस परियोजना में उस महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के निर्माण में योगदान दिया है जो परमाणु संलयन की प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाले सुपर-हॉट प्लाज्मा कणों को नियंत्रित और सीमित करने में मदद करता है। ये कण संलयन प्रक्रिया के दौरान भारी मात्रा में ऊर्जा छोड़ते हैं, जो इस तकनीक को भविष्य की स्वच्छ और असीम ऊर्जा का स्रोत बनाती है।
दुनिया का सबसे शक्तिशाली चुंबक: सेंट्रल सोलेनोइड
ITER परियोजना के तहत तैयार किया गया Central Solenoid दुनिया का सबसे शक्तिशाली चुंबक है। इसका निर्माण और परीक्षण संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) द्वारा किया गया है, और अब इसे दक्षिणी फ्रांस में अंतिम रूप से इकट्ठा किया जा रहा है। यह चुंबकीय प्रणाली प्लाज्मा को नियंत्रित करने में मुख्य भूमिका निभाएगी।
वैश्विक सहयोग का प्रतीक
ITER एक बहुराष्ट्रीय सहयोग का अद्भुत उदाहरण है, जिसमें 30 से अधिक देश भाग ले रहे हैं। प्रमुख भागीदारों में अमेरिका, चीन, जापान, रूस, यूरोपीय संघ और भारत शामिल हैं। यह परियोजना ऊर्जा क्षेत्र में तकनीकी नवाचार और वैश्विक सहयोग की शक्ति को दर्शाती है।
भविष्य की योजना
इस मेगाप्रोजेक्ट का स्टार्ट-अप चरण वर्ष 2033 में शुरू होने की योजना है। इसका उद्देश्य स्थायी, सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्रोत विकसित करना है, जिससे दुनिया की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। ITER परियोजना में भारत की भागीदारी न केवल वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टि से गौरव का विषय है, बल्कि यह भारत की वैश्विक स्तर पर क्लीन एनर्जी इनोवेशन में अग्रणी भूमिका को भी रेखांकित करता है। यह उपलब्धि भविष्य में भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने में सहायक होगी।
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