
भारत सरकार ने अमेरिकी स्टील और एल्युमीनियम उत्पादों पर लगाए गए शुल्कों के जवाब में चुनिंदा अमेरिकी वस्तुओं पर जवाबी शुल्क (Retaliatory Tariffs) लगाने का प्रस्ताव रखा है। यह कदम विश्व व्यापार संगठन (WTO) को औपचारिक रूप से सूचित किया गया है, जिससे भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत का पक्ष: GATT और AoS का उल्लंघन
भारत का तर्क है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए ये शुल्क GATT 1994 (General Agreement on Tariffs and Trade) और सुरक्षा उपायों पर समझौते (Agreement on Safeguards – AoS) के प्रावधानों के अनुरूप नहीं हैं। भारत का मानना है कि यह एकतरफा और अनुचित व्यापारिक बाधा है, जिसका अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों में कोई उचित आधार नहीं है।
अमेरिका का रुख: राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला
वहीं, अमेरिका का दावा है कि भारतीय उत्पादों पर लगाए गए ये शुल्क राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से लगाए गए हैं, और इन्हें WTO के तहत “सुरक्षा उपाय” (Safeguard Measures) की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए। यह मामला WTO में एक प्रमुख कानूनी विवाद का रूप ले चुका है, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर शुल्क लगाने की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं।
WTO में प्रस्तावित जवाबी कदम
भारत द्वारा प्रस्तावित जवाबी शुल्क फिलहाल WTO की अधिसूचना प्रक्रिया के तहत हैं और इन्हें लागू करने से पहले सभी सदस्य देशों को सूचित किया गया है। इस योजना के तहत कुछ अमेरिकी उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाए जा सकते हैं, जिनमें कृषि, औद्योगिक और उपभोक्ता वस्तुएँ शामिल हो सकती हैं।
व्यापार समझौते की उम्मीद
हालाँकि यह विवाद जारी है, लेकिन भारत और अमेरिका के बीच ट्रम्प प्रशासन के तहत एक नया द्विपक्षीय व्यापार समझौता भी अंतिम चरण में है। यह समझौता दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को स्थिर करने और विवादों को सुलझाने की दिशा में एक सकारात्मक पहल हो सकता है।
आर्थिक प्रभाव
WTO के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका द्वारा लागू किए गए शुल्कों का प्रभाव 7.6 बिलियन डॉलर के भारतीय उत्पादों पर पड़ेगा। इसके तहत अमेरिका को 1.91 बिलियन डॉलर का अनुमानित शुल्क संग्रह होने की संभावना है। यह दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन और राजस्व पर स्पष्ट प्रभाव डालता है। भारत का यह कदम न केवल अपने व्यापारिक हितों की रक्षा की दिशा में एक ठोस प्रयास है, बल्कि यह WTO के मंच पर नियम-आधारित वैश्विक व्यापार व्यवस्था को बनाए रखने का संदेश भी देता है। यदि द्विपक्षीय समझौते को अंतिम रूप दिया जाता है, तो यह व्यापारिक तनाव को कम करने और स्थायी समाधान की दिशा में एक सार्थक कदम साबित हो सकता है।
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