
विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने सिंधु जल संधि (IWT) के निलंबन को लेकर मीडिया की अटकलों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि विश्व बैंक की भूमिका केवल एक मध्यस्थ की है। उन्होंने कहा कि मीडिया में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि बैंक कोई ठोस कदम उठाएगा या समाधान पेश करेगा, जबकि यह सब निराधार है। श्री बंगा ने दोहराया कि विश्व बैंक की संधि से जुड़ी भूमिका मध्यस्थता तक सीमित है और इससे आगे उसकी कोई भूमिका नहीं है।
भारत ने अप्रैल 2025 में सिंधु जल संधि (IWT) को “तत्काल प्रभाव से स्थगित” करने की घोषणा की, जो भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 से लागू एक ऐतिहासिक जल-बंटवारा समझौता है। इस निर्णय की जानकारी 24 अप्रैल को जल संसाधन मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष सैयद अली मुर्तजा को एक पत्र के माध्यम से दी। इस पत्र में कहा गया कि भारत संधि को अब और आगे नहीं बढ़ाएगा क्योंकि पाकिस्तान द्वारा बार-बार जम्मू-कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना संधि की मूल भावना और भारत की “अच्छे विश्वास” में निभाई गई प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन है।
सिंधु जल संधि(IWT) को विश्व बैंक की मध्यस्थता में 1960 में हस्ताक्षरित किया गया था। इसके अंतर्गत भारत को पूर्वी नदियाँ – रावी, ब्यास और सतलुज – पूरी तरह उपयोग करने का अधिकार मिला, जबकि पश्चिमी नदियाँ – सिंधु, झेलम और चिनाब – पाकिस्तान को दी गईं, लेकिन भारत को इन पर सीमित उपयोग की अनुमति मिली, जैसे कि कृषि कार्य और रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजनाएं, जिनमें जल भंडारण नहीं किया जा सकता।
भारत ने इससे पहले 2023 में संधि पर पुनर्विचार और पुनर्रचना की मांग की थी, जिसमें बदलती जनसंख्या संरचना, जलवायु परिवर्तन, कृषि आवश्यकताएँ और सीमा पार आतंकवाद से उत्पन्न सुरक्षा खतरे जैसे कारण शामिल थे। हालांकि पाकिस्तान ने इस पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी, जिसके बाद भारत ने अब इसे स्थगित करने का निर्णय लिया है। संधि के तहत स्थापित स्थायी सिंधु आयोग की बैठकें 2022 से बंद हैं, और पाकिस्तान के अड़ियल रुख के कारण किसी विवाद समाधान प्रणाली पर भी सहमति नहीं बन सकी।
इस निर्णय के परिणामस्वरूप भारत अब पाकिस्तान के साथ जलविद्युत परियोजनाओं की सूचनाएँ साझा नहीं करेगा, न ही वह पश्चिमी नदियों पर जल प्रवाह के आँकड़े प्रदान करेगा। भारत सरकार अब अल्पकालिक, मध्यम और दीर्घकालिक योजनाएँ बना रही है ताकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों से पानी की आपूर्ति रोकी जा सके। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सी.आर. पाटिल ने स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान को “अब एक बूँद पानी भी नहीं दिया जाएगा।”
विश्व बैंक, जो इस संधि का एक हस्ताक्षरकर्ता पक्ष है, ने स्पष्ट किया कि वह अपने सदस्य देशों के संप्रभु निर्णयों पर कोई टिप्पणी नहीं करता। हालाँकि, उसने यह भी दोहराया कि यह संधि छह दशकों तक दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण और सफल रही है।
संधि की वर्तमान शर्तों के तहत भारत पश्चिमी नदियों पर बड़े जलाशय नहीं बना सकता है, लेकिन वह रन-ऑफ-द-रिवर परियोजनाओं के ज़रिए विद्युत उत्पादन कर सकता है। भारत ने अतीत में किशनगंगा और बगलिहार जैसी परियोजनाएँ बनाई हैं, जिनके डिज़ाइन को लेकर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई थी। भारत ने हमेशा स्पष्ट किया है कि परियोजनाओं का उद्देश्य केवल तकनीकी क्षमता के अनुसार जल उपयोग करना है, न कि प्रवाह को रोकना।
भारत के इस निर्णय का पाकिस्तान पर व्यापक असर पड़ सकता है क्योंकि पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि पश्चिमी नदियों के जल पर निर्भर करती है। भारत यदि परियोजनाओं के डिज़ाइन में परिवर्तन कर ‘ड्रॉ डाउन फ्लशिंग’ जैसी तकनीकों का उपयोग करता है, तो यह पाकिस्तान के लिए गंभीर जल संकट उत्पन्न कर सकता है।
वर्तमान में भारत संधि को केवल “स्थगित” कर रहा है, न कि औपचारिक रूप से रद्द। इससे भारत को भविष्य में अपने कूटनीतिक रुख को बदलने की गुंजाइश बनी रहती है। इस निर्णय का उद्देश्य पाकिस्तान पर दबाव बनाना और अपनी जल-संपदा के अधिकतम उपयोग के लिए कानूनी अधिकारों का विस्तार करना है।
सिंधु जल संधि (IWT) के मुख्य तथ्य :
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संधि का नाम: सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT)
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हस्ताक्षर तिथि: 19 सितंबर 1960
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प्रायोजक संस्था: विश्व बैंक
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भारत को आवंटित नदियाँ: रावी, ब्यास, सतलुज (पूर्वी नदियाँ)
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पाकिस्तान को आवंटित नदियाँ: सिंधु, झेलम, चिनाब (पश्चिमी नदियाँ)
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2025 में स्थगन की तिथि: 24 अप्रैल 2025
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कारण: पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद; पुनर्वार्ता का अस्वीकार
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प्रमुख भारतीय अधिकारी: देबाश्री मुखर्जी (जल सचिव), सी.आर. पाटिल (मंत्री)
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प्रभाव: जल आँकड़ों का साझा न करना, परियोजनाओं की सूचना रोकना, पाकिस्तान पर दबाव
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पाकिस्तान की कृषि निर्भरता: ~80% पश्चिमी नदियों पर
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णय न केवल एक रणनीतिक कूटनीतिक कदम है, बल्कि यह भारत की बदलती जल नीति और सुरक्षा चिंताओं का संकेत भी है। यह निर्णय दोनों देशों के बीच जल-संबंधों और दक्षिण एशिया में जल कूटनीति के भविष्य को गहराई से प्रभावित कर सकता है। परीक्षाओं की दृष्टि से यह विषय अंतर्राष्ट्रीय संबंध, भारत की जल नीति, और कूटनीतिक रणनीतियों में अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।
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